Himachal Pradesh Economic Crisis: हिमाचल प्रदेश में अब 'मुफ्त सुविधाओं' की वापसी पर विचार?

Himachal Pradesh Economic Crisis: हिमाचल प्रदेश में अब ‘मुफ्त सुविधाओं’ की वापसी पर विचार?

Himachal Pradesh Economic Crisis: हिमाचल प्रदेश सरकार पर कर्ज का बोझ काफी बढ़ गया है। 2018 में राज्य का कर्ज 47,906 करोड़ रुपये था, जो 2023 में बढ़कर 76,651 करोड़ रुपये हो गया।

Himachal Pradesh Economic Crisis: हिमाचल प्रदेश में अब 'मुफ्त सुविधाओं' की वापसी पर विचार?

हिमाचल प्रदेश अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है, लेकिन आजकल यह राज्य एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। इस संकट का मुख्य कारण है मुफ्त की ‘रेवड़ियां’।

Himachal Pradesh Economic Crisis: मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कांग्रेस सरकार अब इस आर्थिक संकट को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अब मुफ्त सुविधाओं वाली सरकारी योजनाओं को वापस लेने पर विचार किया जा रहा है।

हाल ही में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने खुद और मंत्रियों की सैलरी अगले दो महीने तक रोकने की घोषणा की थी। अब उन्होंने जनता को दी जाने वाली सब्सिडी की समीक्षा करने की बात भी कही है। सरकार का कहना है कि पिछली भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई सभी सब्सिडी की समीक्षा की जा रही है, और उनके वित्तीय प्रभाव का आंकलन करने के बाद कुछ सब्सिडी को वापस लिया जाएगा।

अब समझते हैं कि राजनीति में ‘रेवड़ियां’ का क्या मतलब है। ‘रेवड़ियां’ दरअसल चुनावों के समय वोट पाने के लिए जनता को दिए जाने वाले मुफ्त लाभ होते हैं, जैसे मुफ्त बिजली, पानी, राशन आदि। शुरू में ये फायदे लोगों को आकर्षित करते हैं, लेकिन लंबे समय तक ये राज्य की आर्थिक स्थिति पर भारी पड़ते हैं।

हिमाचल प्रदेश में भी पिछले कुछ सालों में कई ऐसी योजनाएं शुरू की गईं, जिनमें लोगों को मुफ्त में सुविधाएं दी गईं। इन योजनाओं की वजह से राज्य का खजाना खाली हो रहा है। ‘रेवड़ियां’ वापस लेना राज्य के लोगों के लिए आसान नहीं होगा, इससे लोगों में असंतोष फैल सकता है, लेकिन लंबे समय में यह राज्य के लिए फायदेमंद हो सकता है।

अब बात करते हैं हिमाचल प्रदेश पर कर्ज की स्थिति की। बजट के अनुसार, 2024-25 के लिए राज्य का जीडीपी 227,136 करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो 2023-24 की तुलना में 9.5% ज्यादा है। लेकिन कर्ज का बोझ भी काफी बढ़ गया है। इस साल कर्ज बढ़कर करीब 86,589 करोड़ रुपये हो गया है। द हिंदु की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में हिमाचल प्रदेश का कर्ज 47,906 करोड़ रुपये था, जो 2023 में बढ़कर 76,651 करोड़ रुपये हो गया था।

PRS इंडिया के अनुसार, 2024-25 के बजट में राज्य सरकार ने 52,965 करोड़ रुपये के खर्च का लक्ष्य रखा है, लेकिन इसमें कर्ज चुकाने का पैसा शामिल नहीं है। इसमें सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह, पेंशन और अन्य खर्चे शामिल हैं, जो लगभग 20,639 करोड़ रुपये बनते हैं। यह खर्च पिछले साल के अनुमान से 4% ज्यादा है।

इस खर्च को पूरा करने के लिए राज्य ने 42,181 करोड़ रुपये की कमाई (ब्याज के बिना) और 7340 करोड़ रुपये का नया कर्ज लेने का प्रस्ताव रखा है। मुख्यमंत्री सुक्खू ने विधानसभा में बताया कि पिछले तीन सालों में सरकार ने 21,366 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है, जिसमें से 5864 करोड़ रुपये चुका दिए गए हैं, और पेंशन विभाग से भी 2810 करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया है।

अब हिमाचल प्रदेश अधिक कर्ज भी नहीं ले सकता। मुख्यमंत्री सुक्खू ने विधानसभा में बताया कि राज्य की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। केंद्र सरकार ने इस साल के लिए हिमाचल को मिलने वाले फंड में 1800 करोड़ रुपये की कटौती की है। पहले हिमाचल अपनी कुल GDP का 5% तक कर्ज ले सकता था, लेकिन अब यह सीमा घटाकर 3.5% कर दी गई है। इस कारण अब हिमाचल पहले से कम कर्ज ले सकता है। अनुमान है कि अगले साल तक यह कर्ज 1 लाख करोड़ रुपये के करीब पहुंच सकता है। हिमाचल प्रदेश की आबादी लगभग 77.56 लाख है और प्रति व्यक्ति कर्ज 1.17 लाख रुपये है, जो अरुणाचल प्रदेश के बाद देश में सबसे ज्यादा है।

Himachal Pradesh Economic Crisis: कर्ज बढ़ने के कारण

कर्ज बढ़ने के कारणों में राज्य सरकार के चुनावी वादे, जैसे पुरानी पेंशन योजना (OPS) की वापसी, महिलाओं को 1500 रुपये महीना देना और मुफ्त बिजली, शामिल हैं। इन वादों को पूरा करने के लिए राज्य को भारी खर्च करना पड़ रहा है। सरकार ने पांच लाख महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये देने का वादा पूरा किया है, जो राज्य पर लगभग 800 करोड़ रुपये का वार्षिक बोझ डालता है। इसके अलावा, पुरानी पेंशन योजना की वापसी से हर साल राज्य का खर्च 1000 करोड़ रुपये बढ़ जाएगा।

हिमाचल प्रदेश सरकार पेंशन पर भी भारी खर्च करती है।

वित्तीय वर्ष 2024 के बजट में वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान में कुल बजट का 46.3% खर्च हो रहा है। राज्य में करीब 189 लाख पेंशनभोगी हैं, जिनकी संख्या 2030-31 तक 239 लाख होने की उम्मीद है, जिससे वार्षिक पेंशन बोझ में करीब 20,000 करोड़ रुपये तक की वृद्धि हो सकती है। 2023 में हिमाचल प्रदेश ने NPS से बाहर आकर पुरानी पेंशन योजना (OPS) में वापसी की थी।

राजीव गांधी स्वरोजगार स्टार्ट-अप योजना

राजीव गांधी स्वरोजगार स्टार्ट-अप योजना के तहत सरकार ने बेरोजगार युवाओं को ई-टैक्सी और ई-बस खरीदने के लिए 50% की सब्सिडी देने की योजना शुरू की है। इस योजना का उद्देश्य रोजगार सृजन और पर्यावरण संरक्षण है।

आर्थिक संकट से निपटने के लिए, राज्य सरकार ने होटलों और बड़े व्यापारियों को मिलने वाली 14 सब्सिडी को कम करने का फैसला किया है। अब होटल मालिकों को बिजली मुफ्त में नहीं मिलेगी, और ‘व्यवस्था परिवर्तन’ के तहत सभी घरों के लिए 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने की योजना भी बंद कर दी गई है। अब केवल बीपीएल परिवारों को ही बिजली मुफ्त में मिलेगी, जिससे सरकार को 200 करोड़ रुपये बचाने की उम्मीद है।

साथ ही, सरकार ने व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से पानी शुल्क वसूलना शुरू कर दिया है, और ग्रामीण क्षेत्रों में 50,000 से ज्यादा वार्षिक आय वाले घरेलू उपभोक्ताओं को भी पानी के बिल का भुगतान करना होगा। हालांकि, कमजोर वर्गों को पानी मुफ्त में मिलता रहेगा। महिलाओं को राज्य की 3000 बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा भी अब पूरी तरह से फ्री नहीं होगी, बल्कि किराए पर 50% की छूट मिलेगी।

मुख्यमंत्री सुक्खू ने इस आर्थिक संकट को ‘अस्थायी बाधा’ बताया है और कहा है कि इन फैसलों से हिमाचल प्रदेश अगले तीन साल में आत्मनिर्भर हो जाएगा।