
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी, सत्ताधारी बीजेपी और विपक्ष दोनों को समान रूप से घेरते हैं।
अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में उन्होंने अयोध्या राम मंदिर से लेकर विपक्ष का रुख़ और बाबरी मस्जिद गिराए जाने तक की घटनाओं का ज़िक्र किया और बीजेपी और विपक्ष को आड़े हाथों लिया.
एक तरफ उन्होंने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम को हिंदू वोटरों के तुष्टिकरण की राजनीति करार दिया और कहा कि अब तक जो कुछ हुआ है उसमें विपक्ष की भूमिका भी अहम रही है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि 1949 में चोरी-छिपे मस्जिद में एक मूर्ति रख दी गई थी जिसके बाद ही ये पूरा आंदोलन शुरू हुआ. मुसलमानों को मस्जिद में जाने से भी रोक दिया गया.
एक तरफ जहां कोर्ट और सरकारों ने संघ परिवार के पक्ष में फ़ैसले लिए वहीं मुसलमानों को और अलग-थलग किया गया. फिर 1992 में बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया गया, ये भी इस प्रक्रिया का ही हिस्सा था.
असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया कि चुनी हुई सरकारों और कोर्ट में बीजेपी-संघ परिवार के आश्वासन के बाद भी मस्जिद को आख़िरकार गिरा ही दिया गया. इसके बाद 2019 में आए कोर्ट के फ़ैसले ने मंदिर का रास्ता साफ कर दिया.
असदुद्दीन ओवैसी ने अख़बार से कहा कि मुस्लिम पक्ष ने लीगल टाइटल को लेकर बहस की थी, कोर्ट ने आस्था से जुड़े सबूत की तलाश की और कहा कि हिंदू पक्ष के पास आस्था के सबूत मज़बूत हैं.
ओवैसी ने कहा, “मैं कहता रहा हूं कि आस्था के आधार पर फै़सला दिया गया होता तो अगर मस्जिद नहीं गिराई जाती तो फै़सला क्या होता? हमारे लिए सांत्वना की बात केवल ये रही कि कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के इस तर्क को माना कि मंदिर गिराकर मस्जिद बनाने की बात के कोई पुरातात्विक प्रमाण नहीं हैं.”
अख़बार से ओवैसी ने कहा कि, “देखा जाए तो, बाबरी मस्जिद-राम मंदिर का पूरा आंदोलन झूठ की ज़मीन पर खड़ा था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई मंदिर नहीं गिराया गया था.”
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