Story of Banaras : बनारस में एक जगह है. मंडुआडीह यहां पर एक रेलवे स्टेशन है, जिसको नरेंद्र मोदी की सांसदी आने के बाद बनारस जंक्शन कहा जाने लगा, और दिल्ली समेत दूसरे इलाक़ों की बड़ी-बड़ी गाड़ियां यहां से चलने लगीं.
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एक समय तक मंडुआडीह एक ही चीज़ के लिए फ़ेमस था, रेड लाइट एरिया. यहां से सटे शिवदासपुर में औरतें और दलाल सेक्सवर्क करते थे. हिन्दी अख़बारों में इस इलाक़े की खबर बताने के लिए जिस्मफ़रोशी जैसे शब्द लिखे जाते थे. शिवदासपुर के चक्कर में मंडुआडीह का भी नाम बदनाम हो गया था. ऐसा बदनाम कि कोई किसी भी काम से मंडुआडीह जाता तो झेंप के मारे किसी को बता न पाता था. बताने पर उसे चिढ़ाया जाता, ये तय था. मंडुआडीह के क़िस्से किसी और दिन.
तो जिस स्टेशन की मैं बात कर रहा था, वहां पर साल 2002 के आसपास एक बड़ी ख़तरनाक लेकिन बड़ी मज़ेदार घटना हुई थी. सावन का महीना चल रहा था. कांवड़िये कांवड़ यात्रा कर रहे थे. उस समय होने वाली कांवड़ यात्रा मौजूदा समय जैसी नहीं होती थी. इतना गाजा-बाजा, डीजे-पीजे, हेलीकॉप्टर से फूल-फ़साना, दुकान बंद करवाना नहीं होता था. कांवड़िये चुपचाप सड़क के किनारे “बोल-बम” कहते हुए निकलते जाते थे.
कोई सिरफिरा कांवड़िया कभी-कभी लड़की को फब्ती कसते हुए पकड़ा जाता था तो आसपास के लोग मिलकर पीट देते थे/ पिटने वाले के साथी कांवड़िये भी कुछ नहीं बोलते थे क्योंकि उनको पता था कि गलती कुटाई खाने वाले ने कर दी है. और ये बनारस है, कुटाई रोकने पर वो लोग भी कूटे जाएंगे. बनारस और कांवड़ का एक दूसरे पर बढ़िया कंट्रोल था.
लेकिन इस भीड़ में एक और मस्ताना कांवड़िया था. उसने भारतीय रेल की नींद उड़ा दी थी. हुआ क्या कि कांवड़ियों का जत्था मंडुआडीह प्लेटफॉर्म पर खड़ा था. उस समय मंडुआडीह से देवघर में मौजूद बैजनाथ धाम की एक ट्रेन चला करती थी. कांवड़ियों को भी उसी से जाना था. सब इंतज़ार कर रहे थे. इसी भीड़ में मस्ताना कांवड़िया भी था.
इसी स्टेशन से एक और ट्रेन जानी थी. बलिया पैसेंजर. ट्रेन खड़ी थी लेकिन अभी तक इंजन नहीं अटैच किया गया था. ट्रेन में समय भी था. इंजन के ड्राइवर ने शेड से इंजन निकाला और उसे ट्रैक पर ला दिया. इंजन जोड़ दिया गया. अब ट्रेन बस रवाना ही होनी थी. ड्राइवर ने इंजन को स्टार्ट करने के बाद चलता छोड़ दिया और उतरकर कुछ पेशाब-वेशाब करने चला गया. उस समय ड्राइवर ऐसा करते थे. चालू करने-बंद करने में ज़हमत होती होगी. तभी ऐसा किया होगा, वरना और क्या कारण होगा.
ये जो मस्ताना कांवड़िया था, वो टहलते-टहलते इंजन के पास गया. उसको इंजन ख़ाली दिखा. कांवड़िया इंजन में चढ़ गया. उसको एक लीवर दिखा. उसने सोचा होगा – देखें ये लीवर करता क्या है? उसने लीवर खींचकर गिरा दिया. ट्रेन अपनी जगह से सरक गई. पीछे की ओर.
Story of Banaras
कांवड़िये को जब तक कुछ समझ में आता, ट्रेन धीरे-धीरे स्पीड में आने लगी थी. ट्रेन ट्रैक पर इंजन के मुंह से उल्टी दिशा में चल रही थी. इधर अधिकारियों को पता लग गया कि उनके झंडे-डंडे के बिना एक ट्रेन स्टेशन से रवाना हो चुकी है. ट्रेन का ड्राइवर स्टेशन पर बरामद हुआ तो पता चल गया कि कोई ट्रेन को बिना ट्रेन और बिना रेलवे की मर्ज़ी के लेकर निकल गया है. सब सन्न रह गये. आदेश आया – जिस ट्रैक पर बलिया पैसेंजर है, उस ट्रैक को ख़ाली रखो. और ट्रेन को रोकने का जुगाड़ लेकर आओ.
इस घटना को उस समय रिपोर्ट करने वाले पत्रकार बताते हैं कि इस समय तक ट्रेन की स्पीड 90 किलोमीटर प्रतिघंटा हो चुकी थी. अंदर जो कांवड़िया बैठा था, उसको एक लीवर दिखा. उसने सोचा कि इसको खींच दें तो ट्रेन रुक जाएगी. लीवर को खींच दिया. ट्रेन की स्पीड 90 से बढ़कर 120 किलोमीटर प्रतिघंटा हो गई. ले मजा. ट्रेन बेफिक्र दौड़ी चली जा रही थी. बेधड़क. ट्रेन इलाहाबाद के ट्रैक पर भागी जा रही थी.
इधर भारतीय रेलवे के अधिकारी ट्रेन के ट्रैक को ख़ाली करवाते रहे. उनको भी लग रहा था कि एक तो चलाने वाला मनमौजी है, और दूसरा ट्रेन की स्पीड काफ़ी तेज है. इस बलिया पैसेंजर के ट्रैक पर कोई भी दुर्घटना हो सकती है. लिहाज़ा ट्रैक ख़ाली करवाओ.
दूसरी तरफ़ ट्रेन को रोकें कैसे, इस पर भी अधिकारी माथापच्ची करने लगे थे. ट्रेन इलाहाबाद के और नज़दीक बढ़ चुकी थी.
इलाहाबाद सिटी स्टेशन पर ट्रेन को रोकने की योजना तैयार की गई. ट्रैक और उसके आसपास बहुत सारा बालू जल्दबाज़ी में डाला गया. आगे के ट्रैक भी ख़ाली करवा दिये गये थे. किसी भी हादसे को रेलवे टालना चाहती थी. क्योंकि ट्रैक पर ट्रेन नहीं थी, एक मिसगाइडेड मिसाइल चल रही थी. ट्रेन जैसे ही मात्र दो घंटे में मंडुआडीह से इलाहाबाद सिटी पहुंची, ट्रेन को पटरी से उतार दिया गया.
बालू की वजह से नुक़सान बहुत मामूली हुआ. कोई घायल या जान की हानि नहीं हुई. रेलवे ने महज़ दो घंटे में इतनी बड़ी दुर्घटना को टाल दिया था. ट्रेन रुकी तो जीआरपी के जवानों ने इंजन में घुसकर कांवड़िये को पकड़ा. सूत दिया. पकड़कर बनारस लाया गया. जेल में डाल दिया गया.
अगले दिन अख़बारों में खबरें पढ़कर लोगों को दो बातें समझ में आईं –
1 – कांवड़िया मानसिक रूप से बीमार था, लेकिन पकड़ में आने के बाद वो जितनी कहानी सुना सकता था, उसने कहानी सुना दी.
2 – रेलवे ठीक से काम करे तो बनारस से इलाहाबाद ट्रेन से 2 घंटे में ही पहुंचा जा सकता है, वरना उस ज़माने में सड़क से 3 घंटे और ट्रेन से 4 से 5 घंटे लग जाते थे.
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