Marital rape: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वैवाहिक बलात्कार के मामलों में सामाजिक और कानूनी प्रभावों के कारण व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

Marital rape: केंद्र ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वैवाहिक बलात्कार से जुड़े मामलों का देश में सामाजिक और कानूनी प्रभाव बहुत दूरगामी होगा, इसलिए इन मुद्दों पर केवल कानूनी दृष्टिकोण की बजाय व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
यह प्रस्तुति सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे में की गई थी। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि “ऐसे विषयों (वैवाहिक बलात्कार) पर न्यायिक समीक्षा करते समय यह समझना आवश्यक है कि यह मामला न केवल एक संवैधानिक प्रश्न है, बल्कि मुख्य रूप से एक सामाजिक प्रश्न भी है। इस पर संसद ने सभी पक्षों की राय को जानने और समझने के बाद अपनी स्थिति स्पष्ट की है।”
संसद ने इस मुद्दे पर सभी पक्षों की राय जानने और समझने के बाद 2013 में आईपीसी की धारा 375 में संशोधन करते हुए उस धारा के अपवाद 2 को बरकरार रखने का निर्णय लिया था, यह जानकारी केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को दी।
यह याचिकाएँ जनहित याचिकाएँ हैं, जो आईपीसी के प्रावधान के खिलाफ दायर की गई हैं। इनमें धारा 375 आईपीसी (बलात्कार) के तहत वैवाहिक बलात्कार अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करता है, जिन्हें उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया गया है।
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