स्वाभिमान की लड़ाइयां कितनी लंबी होती हैं, कैसी होती हैं, कहां तक जाती हैं, कितना असर करती हैं, क्या अंजाम होता है ये सब बहस के विषय हैं लेकिन दिग्गज भाजपा नेता जसवंत सिंह जसोल के पुत्र और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी मानवेंद्र सिंह आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में अपने ही लोकसभा क्षेत्र में हुई एक रैली में भाजपा में लौट आए हैं।
जसवंत सिंह का नाम बहुत बड़ा है और मारवाड़ में बड़ी इज्जत से लिया भी जाता है इसीलिए मानवेंद्र सिंह की कांग्रेस में जॉइनिंग खुद राहुल गांधी ने करवाई और फिर से भाजपा में जॉइनिंग स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में हुई। भाजपा छोड़ने से लेकर भाजपा में लौटने तक मानवेंद्र सिंह ने क्या-क्या खोया और क्या-क्या पाया यह सब किस्मत का खेल है।
राजनीति में चुनावी हार-जीत एक सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। अगर आप अपने नाम से चुनाव जीत सकते हैं या किसी को जिता सकते हैं या किसी को हरा सकते हैं, तो आपको न किसी से डरने की चिंता है, ना किसी का लिहाज करने की फिक्र है। मानवेंद्र सिंह के बारे में कहा जाता है कि वे राजनीतिक दांव-पेंच से दूर एक सरल और सहज राजनेता हैं।
कांग्रेस में जाते ही उन्हें उन्हीं वसुंधरा राजे के खिलाफ झालरापाटन से चुनाव मैदान में उतार दिया गया जिनसे अदावत के चलते उन्होंने भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा था। यह चुनाव वे बड़े मार्जिन से हारे। फिर लोकसभा चुनाव में उन्हें उस बाड़मेर-जैसलमेर सीट से कांग्रेस का टिकट दिया गया जहां से भाजपा के टिकट पर उनके पिता जसवंत सिंह अपना अंतिम चुनाव लड़ना चाहते थे।
पुलवामा से उपजी मोदी लहर में यह चुनाव भी वे बड़े अंतर से हार गए। एक बार फिर विधानसभा चुनाव आया और वे कांग्रेस के टिकट पर जैसलमेर सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के चलते उन्हें वहां से टिकट नहीं दिया गया और सिवाना सीट से चुनाव लड़ाया गया जहां वे फिर एक बार राजनीति का “शिकार” होकर तीसरे नंबर पर फिसल गए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में तीन चुनावी हार के बाद आमतौर पर ज्यादा स्वाभिमान बच नहीं पाता।
फिर भी अगर स्वयं प्रधानमंत्री आपको अपनी पार्टी में वापसी करवाते हैं तो कुछ तो सम्मानजनक होता ही है। अब जबकि बाड़मेर जैसलमेर सीट बीजेपी के लिए एक फंसी हुई सीट है और जिस मकसद से मानवेंद्र सिंह को पार्टी में लाया गया है वह भी बहुत बड़ा लेकिन कठिन है।
इस चुनाव में मानवेंद्र सिंह मैदान में नहीं हैं लेकिन बीजेपी में आने का उनका असर कितना होता है, यह उनकी प्रस्थिति और भविष्य तय करेगा। यहां यह लिखना बेहद प्रासंगिक है कि असर का मतलब सिर्फ और सिर्फ चुनावी हार जीत से ही तय होता है।
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