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‘Criminal Justice 4’ में पत्रकारों को लेकर की गई अभद्र भाषा पर बवाल

‘Criminal Justice 4’ में पत्रकारों को लेकर की गई अभद्र भाषा पर बवाल

‘Criminal Justice 4’ में पत्रकारों को लेकर की गई अभद्र भाषा पर बवाल: क्या ये लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का अपमान नहीं?

‘Criminal Justice 4’ में पत्रकारों को लेकर की गई अभद्र भाषा पर बवाल

चंडीगढ़: ‘Criminal Justice 4’ जैसी बहुचर्चित वेब सीरीज़ इन दिनों एक अलग ही वजह से सुर्खियों में है — वजह है पत्रकारों को लेकर इस्तेमाल की गई अभद्र और आपत्तिजनक भाषा। “गिद्ध के सामने मांस का लोथड़ा डाला और उसने लपक लिया”, “दो कौड़ी का रिपोर्टर“, “मीडिया का सर्कस” जैसे संवाद न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि उन हजारों पत्रकारों के काम, संघर्ष और ईमानदारी पर सवाल खड़ा करते हैं, जो हर दिन लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए लड़ रहे हैं।

पत्रकारिता: एक पेशा या गाली?

ये पहला मौका नहीं है जब वेब सीरीज़ या फिल्मों में पत्रकारों को हल्के अंदाज़ में दिखाया गया हो, लेकिन इस बार मामला सिर्फ एक डायलॉग तक सीमित नहीं है। जिस तरह से संवादों को गढ़ा गया है, वह एक सोची-समझी रणनीति जैसी लगती है — जहां मीडिया को “सर्कस” बताया गया और पत्रकारों को “गिद्ध” का रूप दिया गया। यह महज़ रचनात्मकता नहीं, बल्कि एक पूरे प्रोफेशन को नीचा दिखाने की कोशिश है।

युवा पत्रकारों पर असर

पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे युवाओं का कहना है कि ऐसे संवाद उन्हें हतोत्साहित करते हैं। “हम इस पेशे को चुनते हैं ताकि सच के लिए आवाज़ उठा सकें, लेकिन जब वेब सीरीज़ में हमें ‘गिद्ध’ कहा जाता है, तो लगता है कि समाज हमें गलत नजरिए से देखेगा,” एक पत्रकारिता छात्रा ने नाम न छापने की शर्त पर बताया।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सामाजिक जिम्मेदारी

निर्माताओं की ओर से अब तक कोई सफाई नहीं आई है, लेकिन सवाल उठ रहे हैं — क्या रचनात्मकता की आड़ में एक जिम्मेदार पेशे को इस तरह अपमानित करना सही है? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह है कि हम समाज के सबसे ज़रूरी स्तंभों में से एक को बदनाम कर दें?

वरिष्ठ पत्रकार अजय मल्होत्रा कहते हैं, “आज भी देश के दूरदराज इलाकों में पत्रकार जान जोखिम में डालकर सच्चाई उजागर कर रहे हैं। उन पर ऐसे शब्दों का इस्तेमाल बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”

माफ़ी की मांग तेज

देशभर में पत्रकार संगठनों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। कुछ संगठनों ने निर्माताओं से सार्वजनिक माफ़ी की मांग की है। वहीं, सोशल मीडिया पर भी लोगों की नाराज़गी साफ नज़र आ रही है। ट्विटर पर #ApologizeToJournalists ट्रेंड कर रहा है।

क्या कहता है लोकतंत्र?

पत्रकारिता कोई सामान्य पेशा नहीं। यह वह जिम्मेदारी है, जो सत्ता से सवाल करती है, जनता की आवाज बनती है और समाज को सच से जोड़ती है। ऐसे में, जब वेब सीरीज़ के जरिए पत्रकारों की छवि को धूमिल किया जाता है, तो यह न केवल अपमानजनक है, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा को भी चोट पहुंचाता है।

मनोरंजन के नाम पर किसी भी पेशे का अपमान रचनात्मकता नहीं हो सकती। ‘क्रिमिनल जस्टिस 4’ के संवादों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हम आज सच बोलने वालों को चुप कराने के लिए उन्हें पहले बदनाम कर देते हैं?

यह वक़्त है कि निर्माता अपनी गलती स्वीकारें और पत्रकारों की गरिमा को बहाल करने के लिए सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगें। लोकतंत्र तभी बचेगा जब उसके चौथे स्तंभ को मज़बूती से खड़ा रखा जाएगा — न कि उसे ‘सर्कस’ कहकर गिरा दिया जाएगा।