Arvind Kejriwal Resignation Story : केजरीवाल के फैसले पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं: कोई बता रहा है क्रांतिकारी कदम, तो कोई नाटक।

Arvind Kejriwal Resignation Story: दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल एक्साइज पॉलिसी मामले में जेल गए और 13 सितंबर को जमानत पर रिहा हुए। 15 सितंबर को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी, साथ ही यह भी कहा कि उनकी जगह आम आदमी पार्टी से कोई और मुख्यमंत्री बनेगा। AAP के विधायक दल की बैठक में दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री का चयन किया जाएगा। केजरीवाल के इस फैसले को कुछ लोग ‘क्रांतिकारी कदम’ मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे ‘नाटक’ कह रहे हैं। उनके इस फैसले के विभिन्न अर्थ निकाले जा रहे हैं।
Arvind Kejriwal Resignation Story: अरविंद केजरीवाल इस्तीफा क्यों दे रहे हैं?
अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि वह तब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे जब तक जनता यह फैसला न कर दे कि वह ईमानदार हैं या नहीं।
उन्होंने कहा,”कुछ महीनों बाद दिल्ली में चुनाव हैं। मैं जनता से अपील करना चाहता हूं कि अगर आपको लगता है कि केजरीवाल ईमानदार है, तो मेरे पक्ष में वोट दें। अगर आपको लगता है कि मैं गुनाहगार हूं, तो मुझे वोट मत दें।”
ऐसे में माना जा रहा है कि इस्तीफा देकर केजरीवाल अपनी ईमानदारी वाली छवि को और मजबूत करना चाहते हैं। अपने भाषण में उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें न तो पद का लालच है और न दौलत का।
इस प्रकार अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के फैसले को एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। इसका उद्देश्य आगामी विधानसभा चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी (AAP) को मजबूती देना है। उनका यह कदम जनता का समर्थन हासिल कर सकता है और AAP के लिए वोटों में परिवर्तित हो सकता है।
बेल की शर्तों के कारण इस्तीफा
केजरीवाल का इस्तीफा देने का एक कारण सुप्रीम कोर्ट की ओर से उनकी जमानत पर लगाई गई शर्तों को बताया जा रहा है। इन शर्तों के तहत केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं जा सकते और केवल उन फाइलों पर हस्ताक्षर कर सकते हैं जो उपराज्यपाल के पास जानी हैं। ऐसी स्थिति में उनके पद पर बने रहने से उनकी पार्टी की प्रमुख नीतियों के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न होती, जिससे आगामी चुनावों में नुकसान की संभावना थी।
हालांकि, केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट की शर्तों के कारण इस्तीफा देने की बात को खारिज किया है। अपने भाषण में उन्होंने कहा,”कुछ लोग कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तें लगाई हैं, इसलिए मैं काम नहीं कर पाऊंगा। पिछले 10 सालों में भी कई शर्तें लगाई गई थीं। LG साहब ने शर्तें लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। केंद्र सरकार ने कानून पर कानून लाकर मेरी शक्तियां छीनीं, लेकिन मैंने आपके काम बंद नहीं होने दिए। ये शर्तें हमारे लिए कोई बाधा नहीं हैं। इन शर्तों का भी हल निकाल लेंगे।”
केजरीवाल ने राष्ट्रपति शासन का खतरा टाला
एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू दिल्ली में राष्ट्रपति शासन का मंडराता खतरा था। हाल ही में BJP ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से दिल्ली सरकार को बर्खास्त करने की मांग की थी, यह कहते हुए कि दिल्ली में ‘संवैधानिक संकट’ है क्योंकि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल में हैं, जिससे सरकार के कई काम अटके हुए हैं।
अब, केजरीवाल ने इस्तीफे की घोषणा करके BJP से ‘पॉलिसी पैरालिसिस’ का मुद्दा छीन लिया है। साथ ही, उनके राजनीतिक विरोधियों की मांग थी कि शराब नीति मामले में नाम आने और गिरफ्तारी के बाद उन्हें इस्तीफा देना चाहिए। केजरीवाल ने इस फैसले के साथ उन सभी को जवाब दे दिया है।
केजरीवाल किस पर दांव खेलेंगे?
दिल्ली के अगले मुख्यमंत्री को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता, और उनके मंत्रियों आतिशी और गोपाल राय के नाम सामने आ रहे हैं। हालांकि, केजरीवाल के इस्तीफे के बाद आम आदमी पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री की पत्नी सुनीता केजरीवाल इस पद की संभावित उम्मीदवार हो सकती हैं। बताया जा रहा है कि जब इस साल 21 मार्च को ED ने केजरीवाल को गिरफ्तार किया था, तब सुनीता केजरीवाल ने पार्टी के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वहीं, AAP के एक अन्य वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी का कोई विधायक ही नया मुख्यमंत्री बनेगा।
मुख्यमंत्री पद के संभावित उम्मीदवारों में मंत्री कैलाश गहलोत और सौरभ भारद्वाज का नाम भी चर्चा में है। इसके साथ ही, चुनावी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए पार्टी किसी दलित या मुस्लिम विधायक को भी मुख्यमंत्री पद के लिए आगे ला सकती है।
आतिशी को भी मुख्यमंत्री पद के लिए एक मजबूत दावेदार माना जा रहा है। उनके पास शिक्षा, वित्त, लोक निर्माण और राजस्व विभागों की जिम्मेदारी है और वो केजरीवाल की करीबी मानी जाती हैं। वहीं, गोपाल राय भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं और पहली बार AAP के सत्ता में आने के बाद से सरकार में बने हुए हैं। सौरभ भारद्वाज भी इस दौड़ में शामिल हैं, जो स्वास्थ्य और शहरी विकास जैसे प्रमुख विभागों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
सूत्रों का यह भी कहना है कि मुख्यमंत्री पद के लिए एक चौंकाने वाला नाम अल्पसंख्यक समुदाय से हो सकता है, क्योंकि 2020 के दिल्ली दंगों के बाद से इस समुदाय में AAP का समर्थन कमजोर हुआ है। इस स्थिति में मंत्री इमरान हुसैन भी एक संभावित चेहरा हो सकते हैं।
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